Haryana Ground Water Crisis : हरियाणा में लगातार घट रहे भूजल से 14 जिलों में स्थिति गंभीर है। यही नहीं 1948 गांव रेड जोन में पहुंच चुके हैं। इसके साथ ही 141 खंडों में से 85 ब्लॉक डार्क जोन की श्रेणी में आ चुके हैं। तो आईए जानते हैं किस जिले में कैसी है भूजल की स्थिति।
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Sachpost News, Delhi : जल संसाधन मंत्रालय ने हरियाणा प्रदेश की एक रिपोर्ट जारी करते हुए सभी जिला अधिकारियों को वर्ष 2025 तक इसमें सुधार के निर्देश दिए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश के 14 जिलों में भूजल स्तर 30 मीटर से भी नीचे खिसक चुका है।
लिहाजा, हर साल 14 लाख करोड़ लीटर पानी की कमी से जूझ रहे प्रदेश में 34.96 लाख करोड़ लीटर पानी चाहिए, जबकि उपलब्ध सिर्फ 20.93 लाख करोड़ लीटर पानी है।
आगामी दो वर्षों में 9.63 लाख करोड़ लीटर पानी की डिमांड बढ़ने का अनुमान है। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अनुसार, प्रदेश के 40 हजार 392 वर्ग किलोमीटर में से 24 हजार 773 वर्ग किलोमीटर यानी 61 प्रतिशत क्षेत्र में भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है।
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प्रदेश के जीटी बेल्ट के साथ दक्षिणी हरियाणा में पानी की उपलब्धता लगातार घट रही है। खासकर अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, हिसार, झज्जर, भिवानी, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, सिरसा, सोनीपत, पानीपत और जींद में स्थिति गंभीर है।
आज कुल 141 खंडों में से 85 ब्लॉक डार्क जोन में आ चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में समस्या ज्यादा है। 7287 गांवों में से केवल 1304 गांव ग्रीन जोन में हैं, जबकि 6150 गांवों में भू-जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है।
फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा से जूझ रहे 136 गांव
20 जिलों के 136 गांव भूजल में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा से जूझ रहे हैं। भिवानी के लोहारवाला गांव में पानी में फ्लोराइड का स्तर 22 मिलीग्राम/ लीटर तक दर्ज किया गया जो अनुमेय सीमा से 15 गुना अधिक है।
विशेषज्ञों के अनुसार, 1.5 मिलीग्राम/लीटर से अधिक फ्लोराइड सांद्रता वाला पानी पीने योग्य नहीं होता। पानीपत के अटावला और जींद के उचाना में भी भूजल में फ्लोराइड की मात्रा अत्यधिक है।
भूजल में अपशिष्ट पदार्थों का मिश्रण बढ़ने से ब्लड प्रेशर, पथरी, दिमागी कमजोरी, शरीर में दर्द, पेट के रोग, पीलिया की शिकायतें बढ़ी हैं। पेयजल में अशुद्ध पदार्थों के मिश्रण (टीडीएस) जैसे कि सोडियम, मैग्नीशियम, मरकरी, नाइट्रेट, पैरागान की मात्रा 1000 से 2000 के घातक स्तर पर पहुंच गई है, जबकि टीडीएस 200 से 300 प्रति लीटर मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।