Mohammed Rafi Death Anniversary : मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया जिसके बाद तीन साल तक दोनों ने एक-दूसरे के साथ कोई गीत नहीं गया। तो आइए जानते हैं क्या रही झगड़े की वजह और किसने पहले माफी मांग कर किया झगड़ा खत्म। पढ़ें पूरी खबर विस्तार से..।
सचपोस्ट न्यूज, नई दिल्ली : भारतीय संगीत जगत के सबसे प्रसिद्ध दो नाम मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर हमेशा याद किए जाएंगें। दोनों ही गायक कलाकरों ने अपनी आवाज के जादू से लोगों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है. 31 जुलाई 1980 में मोहम्मद रफी इस दुनिया को अलविदा कह गए।
‘लिखे जो खत तुझे’, ‘बागो में बहार है’, ‘दीवाना हुआ बादल’, ‘आने से उसके आए बहार’, जैसे पांच हजार से अधिक गानों को अपनी आवाज देने वाले मोहम्मद रफी की यूं तो कई किस्से कहानियां आपने पढ़ी होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लता मंगेशकर के साथ उनका एक बार उनका 36 का आंकड़ा हो गया था. दोनों में ऐसा झगड़ा हुई कि दोनों ने एक-दूसरे के साथ 3 सालों तक कोई भी गीत नहीं गाया।
हर संगीतकार चाहता था लता के साथ काम करना
बता दें कि 60 का दशक आते-आते लता मंगेशकर का रुतबा इतना बढ़ गया था कि हर संगीतकार ये चाहता था कि लता उनके साथ गाना गाए। सच भी था क्योंकि वो जिस भी फिल्म में जिस भी संगीत निर्देशक के साथ गातीं वो फिल्म हिट हो जाती थी. इस समय तक संगीत कंपनियां संगीतकारों को रॉयल्टी देने का काम शुरू कर चुकी थीं. विदेश की तर्ज पर संगीतकार हर साल हजारों रुपये की रॉयल्टी कमाते थे और गायकों को एक पैसा भी नसीब नहीं होता था।
गाने के लिए लता मंगेश्कर ने छेड़ी थी रॉयल्टी देने की मुहिम
लता मंगेशकर ने इस बात की मुहिम छेड़ दी कि यदि संगीतकारों को रॉयल्टी मिलेगी तो गायकों को भी रॉयल्टी मिलना ही चाहिए. इस बात का संगीत कंपनियों और संगीतकारों ने काफी विरोध किया। लता के साथ किशोर कुमार, मुकेश साहब, मन्ना डे, तलत महमूद जैसे कई दिग्गज कलाकार थे।
लता ने इस सिलसिले में मोहम्मद रफी साहब से भी बात की. लेकिन रफी साहब तो पैसों के मामले में फकीर किस्म के व्यक्ति थे. उन्हें सिर्फ और सिर्फ कला सेवा से मतलब था. उनका सोचना था कि जब गायक ने गाना गा दिया और प्रोड्यूसर ने उनका मेहनताना दे दिया तो उनका गाने पर कोई हक नहीं बचता।
इस बात को लेकर हो गया था दोनों में झगड़ा
गायक को रॉयल्टी दिलाने को लेकर गायकों की एक बड़ी बैठक हुई। बहस होने लगी तो बड़े ही सरल स्वभाव के रफी साहब भी गुस्से में आ गए और उन्होंने कहा कि वो आज के बाद लता के साथ गाना नहीं गाएंगे।
लता का भी गुस्सा तेज था तो उन्होंने कहा, ‘आप क्या नहीं गाएंगे, आज से मैं ही आपके साथ कोई गाना नहीं गाऊंगी’. इसके बाद लता ने सभी संगीतकारों को फोन करके रफी के साथ कोई डुएट रखने के लिए साफ मना कर दिया. यहां तक कि ये भी कह दिया कि अगर वो रफी से गाना गवाएंगे तो वो उनके साथ कभी काम नहीं करेंगी।
इस किस्से का जिक्र उनकी बायोग्राफी, ‘मोहम्मद रफी: माई अब्बा- ए मेमॉयर’ में किया है, जो उनकी बहू यास्मीन खालिद रफ़ी द्वारा जारी की गई थी. रॉयल्टी को लेकर दोनों के बीच ऐसा विवाद हुआ कि दोनों ने फिर करीब 3 साल तक साथ काम नहीं किया।
यूं हुआ दोनों में झगड़ा खत्म
लता मंगेशकर एक साक्षात्कार में बताया था कि संगीतकार जयकिशन के कहने पर रफी साहब ने एक चिट्ठी लिख कर लता से माफी मांग कर मामला खत्म करने के लिए कहा। फिर 1967 में संगीतकार एसडी बर्मन के लिए एक संगीत समारोह आयोजित किया गया था. दादा बर्मन ने दोनों को एक साथ गाने के लिए स्टेज पर भेजा. उस साल रिलीज हुई दादा बर्मन की सुपरहिट फिल्म ज्वेल थीफ के सुपरहिट गाने ‘दिल पुकारे आ रे आ रे’ गाते हुए दोनों ने एंट्री ली और इस तरह ये रॉयल्टी की लड़ाई के साथ लता और रफी की लड़ाई खत्म हुई।
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