Haryana election 2024 : तीन राज्यों में कांग्रेस की हार से हरियाणा में कांग्रेस का एसआरके ग्रुप सदमें में है। क्योंकि इस ग्रुप के सभी नेता प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने की हवा के चलते खुद को गाहे बगाहे मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार बताने में जरा सा भी संकोच नहीं करते थे। परंतु अब कांग्रेस आलाकमान के दिमाग में इनकी इमेज इतनी बिगड़ गई है कि वे अब इन्हें सीएम शिप तो क्या संगठन में भी कोई बड़ी जिम्मेदारी देने से गुरेज करेंगे|
इसका कारण यह है कि इन नेताओं को छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के चुनावों में कांग्रेस को जीत दिलाने की जिम्मेदारी दी गई थी। परंतु तीनों ही राज्यों में कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकी। इस ग्रुप के पहले व मुख्यमंत्री पद की सशक्त दावेदारी साबित करने में जुटी एक दलित नेत्री ने तो हिसार में अपना रथ तक चला डाला था जिस पर अपने बड़े बड़े पोस्टर लगा कर लिखा कि मुख्यमंत्री पद की दावेदारी, मेरा हक। परंतु इस नेत्री को जिस प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया गया था वहां इनकी चुनाव जीतने की कार्यशैली प्रभावहीन रही और वहां कांग्रेस ने केवल 35 सीटें ही जीतीं, जबकि मतदान से पूर्व यहां हर कोई ये अंदाजा लगा रहा था कि छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस स्पष्ट बहुमत हासिल करने में कामयाब हो जाएगी।
परंतु चुनाव परिणाम बिल्कुल विपरीत आए। ऐसे में इस दलित नेत्री के बारे में तरह तरह के चर्चे चल पड़े। राजनीति के जानकारों ने तो यहां तक कह दिया कि यदि इस नेत्री को पार्टी हाईकमान ने कहीं हरियाणा में मुख्यमंत्री बनाने की सोच ली तो ये कांग्रेस को सत्ता दिलवाना तो दूर कांग्रेस की नीतियों के विपरीत काम हो जाएगा क्योंकि इस नेत्री पर हरियाणा हाईकोर्ट ने आपराधिक साजिश के सबूतों के साथ जालसाजी करने, मिर्चपुर कांड के दौरान पीड़ितों को जाट समुदाय के साथ समझौता करने को लेकर डराने व पीड़ितों को भड़काने, लोगों पर खाली व गैर न्यायिक पत्रों पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव देने के आरोप में एक नोटिस जारी किया था। कुछ ने तो यहां तक भी कहा कि यह नेत्री पिछले करीब 10 वर्षों से कभी भी प्रदेश की जनता से सीधे तौर पर नहीं जुड़ सकीं, तो ये क्या प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करेंगी।
वहीं एसआरके ग्रुप के दूसरे बड़े नेता जो कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद गदगद नजर आ रहे थे और खुद को हरियाणा में मुख्यमंत्री पद के दावेदार बताते नहीं हिचकिचाते थे, ने कांग्रेस आलाकमान से मध्यप्रदेश में कांग्रेस को विजयी बनाने का जिम्मा लिया था, वे भी अपनी साख नहीं बचा पाए और वहां भाजपा ने सबसे अधिक 163 सीटें जीत कर लगातार चौथी बार सत्ता पाई। इस नेता ने खुद को हरियाणा में मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताते हुए दावा किया था कि मध्यप्रदेश में इस बार अगर कांग्रेस सत्ता में न आई तो वे अपने चुनाव जीतने के कौशल का फिर से विश्लेषण करेंगे।
यह बात अलग है कि ये हरियाणा में अपनी खुद की सीट भी नहीं जीत पाए थे। इसके अलावा एसआरके ग्रुप की तीसरी बड़ी नेत्री जो कभी अपने गृह जिले से बाहर न कभी कोई चुनाव लड़ीं और न कभी किसी को जितवाने अथवा टिकट दिलवाने में कामयाब रहीं, को राजस्थान में केवल शहरी इलाकों में कांग्रेस की जीत के लिए प्रभार सौंपा गया था, वह अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में भी राजस्थान में कांग्रेस को जीत नहीं दिलवा पाईं। ऐसे में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस को जीत दिलवाने के लिए प्रभारी बने एसआरके ग्रुप के सभी बड़े नेता जो खुद को हरियाणा में मुख्यमंत्री पद का दावेदार बता रहे थे, उनकी राजनीतिक क्षमता पर प्रश्नचिह्न लग गया है। अगर उक्त ग्रुप के नेताओं को कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश की राजनीति से अलग नहीं किया तो उसे आगामी चार महीने बाद होने वाले लोकसभा में भी इसी प्रकार के परिणाम देखने को मिलेंगे।
दीपेंद्र व भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने राजस्थान में 35 में से जीतीं 29 सीटें
हरियाणा में विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश के एक मात्र कांग्रेसी सांसद दीपेंद्र हुड्डा को राजस्थान में हरियाणा से सटे शेखावटी क्षेत्र में कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी को विजयी बनाने के लिए प्रभारी बनाया था। इन दोनों नेताओं ने शेखावटी क्षेत्र में आने वाले करीब 35 विधानसभा सीटों में से 29 पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों को विजयी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
इस इलाके में अपने प्रभाव के चलते दोनों नेताओं ने दिन रात मेहनत करके कांग्रेस आलाकमान की झोली में क्षेत्र की 29 सीटें डालकर न केवल पार्टी हाईकमान को अपनी राजनीतिक क्षमता का परिचय दिया अपितु इस क्षेत्र से सटे हरियाणा के इलाके में भी इस बात की चर्चा को हवा देने में कामयाबी पाई कि अबकी बार प्रदेश में कांग्रेस की लहर इन्हीं नेताओं की बदौलत है।
चारों राज्यों में कांग्रेस को भाजपा से 10 लाख वोट अधिक मिले
हुड्डा ने मीडिया को चुनाव परिणाम पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया कि चारों प्रदेशों में जितने वोट भाजपा को मिले हैं कांग्रेस पार्टी को भाजपा से दस लाख अधिक वोट मिले हैं। बताया गया कि भाजपा को चारों प्रदेश में कुल 4करोड़ 81लाख 33 हजार 463 वोट मिले जबकि कांग्रेस पार्टी को 4करोड़ 90 लाख 77 हजार 907 वोट हासिल हुए हैं। इन नेताओं ने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का हौंसला बढ़ाते हुए कहा कि हम हारे नहीं हैं बल्कि पहले से और अधिक मजबूत हुए हैं और लोकसभा चुनावों में जीत का परचम भी अवश्य लहराएंगे।
संगठन के लिए फ्री हैंड हो तो भाजपा को मिलेगी टक्कर
राजनीति के जानकारों का कहना है कि वर्तमान में हरियाणा में कांग्रेस के जितने भी विधायक हैं, उसमें से 80 प्रतिशत तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रभाव की बदौलत ही विधायक बने हैं, जबकि मुख्यमंत्री पद के अन्य नेता तो अपनी अपनी विधानसभा में भी जीतने के लिए शंकित हैं।
ऐसे में उनका मानना यह भी है कि यदि प्रदेश के संगठन में भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी आलाकमान फ्री हैंड दे तो निश्चित रूप से कांग्रेस का एक मजबूत संगठन लोकसभा चुनावों से पहले प्रदेश में तैयार हो जाएगा और यह संगठन भाजपा की चुनावी रणनीति के मुकाबले अधिक शक्तिशाली तरीके से काम करने में कामयाब होगा।
इनका मानना है कि वैसे भी प्रदेश में एसआरके ग्रुप अपने जिले से बाहर खुद को प्रदेश स्तरीय नेता साबित करने में बुरी तरह से विफल रहा है क्योंकि इन नेताओं ने कभी भी प्रदेश स्तरीय किसी कार्यक्रम में खुद को दूर ही रखा है, जबकि आज प्रदेश में अगर कांग्रेस का वर्चस्व बढ़ा है तो वह हुड्डा की बदौलत ही बढ़ा है।