king maker of politics : 25सितंबर 1914 में वर्तमान हरियाणा के सिरसा जिले में जन्मे चौधरी देवीलाल भारतीय राजनीति के असली किंग मेकर (king maker of politics) बने । ताऊ देवीलाल पहली बार 1952 मे कांग्रेस के टिकट पर पंजाब विधान सभा पहुंचे और 1971 तक कांग्रेस पार्टी में रहे।
सन 1989 की बात है जब लखनऊ में चौधरी चरणसिंह की विरासत को लेकर मुलायम सिंह यादव व चौधरी अजीतसिंह के समर्थक आमने-सामने थे लेकिन देवीलाल ने मुलायम सिंह जी को समर्थन देकर सुबे का सीएम बना दिया।
1987 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में 90 में से 85 सीटें जीतकर कांग्रेस को मात्र पांच सीटों पर समेट दिया। यह चुनाव ताऊ देवीलाल को राज्य चुनावों से उठाकर राष्ट्रीय स्तर पर लाने में अहम भूमिका निभाई।
1989 में जब प्रधानमंत्री बनने की बारी आई तो उन्होंने संसदीय दल के चुनाव से खुद को हटाकर वीपी सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंप दी।वीपी सिंह के कुर्सी पर बैठते ही लालू प्रसाद यादव व शरद यादव ने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने का दबाव बनाया लेकिन वीपी सिंह हिचकिचाहट में थे।ताऊ देवीलाल ने अलग होकर वोट क्लब में रैली की घोषणा कर दी।देवीलाल समर्थकों को साधने के लिए वीपी सिंह को मंडल आयोग की रिपोर्ट निकालकर लागू करनी पड़नी।
मंडल आयोग की रिपोर्ट के खिलाफ बीजेपी के नेता पंडित अटलबिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी ने कमंडल उठा लिया व वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापिस ले लिया।ताऊ देवीलाल को सलाहकारों ने कहा कि कांग्रेस से समर्थन लेकर पीएम बनने का मौका है लेकिन देवीलाल ने इसे उसूलों के खिलाफ बताया।
ताऊ देवीलाल 1940 के दशक से स्वतंत्रता आंदोलन व राजनीति में सक्रिय रहे।तेजाराम जी सिहाग का परिवार एक सम्पन्न परिवार रहा लेकिन उनका अंदाज हमेशा ठेठ देहाती ही रहा।कई तत्कालीन पत्रकार व लेखकों ने लिखा है कि वो शहरी व अभिजात्य वर्ग के बीच खुद को असहज महसूस करते थे इसलिए केंद्रीय राजनीति में वो किंग के बजाय किंग मेकर बने रहना ही बेहतर समझते थे।
हालांकि उन्होंने यूपी,बिहार से लेकर पंजाब-हरियाणा तक कइयों को मुख्यमंत्री बनाने में अपनी अहम भूमिका रही लेकिन साथ मे प्रताप सिंह कैरो व भजनलाल से इनके मतभेद भी जगजाहिर रहे है।1987 से 1992 तक पूरे उत्तर भारत की राजनीति ताऊ देवीलाल के इर्द-गिर्द चलती थी।राजनीतिक शह मात के मंजे हुए खिलाड़ी की तरह राज्यों से लेकर केंद्र तक अपनी गोठियाँ सेट करते रहे।
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हरियाणा में बाढ़ आई तो काम के बदले अनाज योजना शुरू की जो विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए आज मनरेगा के रूप में चल रही है।वृद्धावस्था पेंशन की शुरुआत भी चौधरी देवीलाल ने की थी और आज किसी राज्य में कम तो किसी मे ज्यादा लेकिन जारी है।जच्चा-बच्चा योजना भी ताऊ देवीलाल की देन है जो आज जननी सुरक्षा योजना के रूप में चल रही है।
हालांकि पुत्र ओमप्रकाश चौटाला पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर व मुख्यमंत्री बनने के तरीके पर मौन रहने के कारण ताऊ देवीलाल पर सवाल भी खड़े हुए थे और आज तीसरी-चौथी पीढ़ी उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का दावा तो करती है लेकिन देहाती किसान समाज से कटी हुई व व्यापारी वर्ग व ब्रह्मण तंत्र के साथ खड़ी नजर आती है।ताऊ देवीलाल ने उसूलों का हवाला देकर प्रधानमंत्री तक के पद को अस्वीकार कर दिया था और उसी विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करने वाले लोग उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसान बिरादरी की जनभावना को दरकिनार करते हुए चिपके हुए है।
आज जो कांग्रेस मुक्त भारत का दावा करते है वो झूठा है।कांग्रेस मुक्त करने की नींव 1977 में चौधरी चरण सिंह ने रखी थी और मैदान में सजाया चौधरी देवीलाल ने।इंदिरा गांधी के खिलाफ जब मोर्चा खोला गया तो प्रचंड बहुमत की सरकार थी।राजीव गांधी को जब पटकन दी गई तब भी प्रचंड बहुमत की सरकार थी।उसके बाद कांग्रेस दुबारा बहुमत में नहीं आ पाई।आज भी प्रचंड बहुमत की सरकार है और चौधरी चरणसिंह व ताऊ देवीलाल के अनुयायी मोर्चा खोलकर खड़े है। और इनके वंशज खेर मेरा मानना है वैचारिक वारिश ही असल वारिश होते हैं इनके बाद ईनका कोई भी वारिश गैर ब्राह्मण मजबूत राजनीतिक दृष्टिकोण के विचार को आगे नहीं बढ़ा पाया।
उस समय ताऊ देवीलाल ने साहब कांशीराम को केवल राजनीतिक मोहरा ना समझकर एक मजबूत वैचारिक राजनीतिक दृष्टिकोण के नजरिए से देखा होता तो उस समय कब्र में लटक रही संघ की व्यवस्था कब्र में ही दफन हो जाती
आज इनके वंशज इनके लगाए हुए पेड़ को काटकर मनुवाद की व्यवस्था को सिंच रहे हैं ।
अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा वो वक्त बताएगा लेकिन संघ मुक्त भारत की नींव रखी जा चुकी है।
कमल बनभौरी की कलम से…
कमल बनभौरी जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं। सचपोस्ट ने आपकी कलम से पाठकों के लिए सही और सच्ची खबर के स्लोगन को पूरा किया है। भविष्य में भी ऐसी जानकारी वाले काॅलम चलाते रहें।