SC-ST Promotion Case : 31 अक्टूबर 2009 को पटना विश्वविद्यालय में पूर्व बैकलॉग की गणना के आधार पर प्रशाखा पदाधिकारी के पद के लिए 9 सीटें निर्धारित की गई थी। ज्ञापन संख्या था 1577 में पूरे पटना विश्वविद्यालय में प्रशाखा पदाधिकारी के 11 पद हैं और उस दौरान 10 पद खाली थे। पटना यूनिवर्सिटी की ओर से जारी ज्ञापन के मुताबिक SC-ST को 9 पदों पर पद्दोन्नति का प्रस्ताव आया। इसमें एससी के लिए पांच और एसटी के लिए 4 पद सुरक्षित रखे गए। लेकिन एससी-एसटी के कर्मचारियों को प्रशाखा पदाधिकारी के पद पर पद्दोन्नत नहीं कर असिस्टेंट से स्पेशल असिस्टेंट यानी सहायक से विशेष सहायक बना दिया गया। जबकि जानकारों ने बताया कि ऐसा कोई पद होता ही नहीं है। यह सीधे तौर पर SC-ST Promotion Case में धांधली है।
SC-ST Promotion Case में धांधली को लेकर उठाई आवाज
11 मई 2023 को ( यानि 14 साल बाद) पटना विश्वविद्यालय ने ज्ञापन संख्या- 492 के जरिये प्रशाखा पदाधिकारी के छह सीटों पर प्रोमोशन कर दिया गया है। इसमें तीन एससी-एसटी को जबकि तीन जनरल को दे दी गई। जिसके खिलाफ SC-ST के कर्मचारियों ने आवाज उठाई है। आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों ने Promotion के इस मामले (Case) में दो गंभीर आरोप लगाते हुए पटना विश्वविद्यालय के कुलसचिव और कुलपति से न्याय की गुहार लगाई है
आरोपः 2009 में नौ और 2023 में पांच सीटें कैसे हुई
एससी-एसटी वर्ग के कर्मचारियों का आरोप है कि जब साल 2009 में प्रशाखा पदाधिकारी पद के लिए बैकलॉग गणना के आधार पर एससी-एसटी के लिए 9 सीटें खाली थी तो साल 2023 में घटकर वह पांच सीटों पर कैसे सिमट गया? नए आदेश में एससी-एसटी के लिए पांच और जनरल की सीटें 5 कैसे हो गई?
इसका विरोध करते हुए एससी-एसटी वर्ग के कर्मचारियों ने पटना विश्वविद्यालय के कुलसचिव और कुलपति को ज्ञापन सौंपा है। एससी-एसटी कर्मियों की मांग है कि 11 मई 2023 को ज्ञापन संख्या- 492 के आलोक में पटना विश्वविद्यालय मुख्यालय में प्रशाखा पदाधिकारी के पद पर की गई प्रोन्नति को रद्द किया जाए।
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कोर्ट में चल रहा पद्दोन्नति का मामला
इस मामले में एक दूसरा पहलू यह भी सामने आया कि बैकलॉग की गणना के आधार पर साल 2009 में हुई पद्दोन्नति का मामला कोर्ट में चल रहा है। इस बारे में उच्च शिक्षा निदेशक रेखा कुमारी ने मई 2023 को एक पत्र जारी कर पटना विश्वविद्यालय के कुलसचिव को कहा था कि पद्दोन्नति का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए इस बारे में किसी तरह का दखल न दिया जाए। इसलिए ऐसे में यह पूरा मामला पटना विश्वविद्यालय प्रशासन पर कई गंभीर सवाल खड़े करता है।
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